भगवान अजितनाथ (ajitnath bhagwan) जैन धर्म के द्वितीय तीर्थंकर है. अजितनाथ प्रभु का जन्म अयोध्या के राजपरिवार में माघ के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन हुआ था. इनके पिता का नाम जितशत्रु राजा और माता का नाम विजया देवी था. तीर्थंकर अजितनाथ भगवान (ajitnath bhagwan 2nd trithankar aarti) का प्रतिक चिह्न हाथी था. इनकी आरती (bhagwan shri ajitnath aarti) सभी पाप-ताप से मुक्ति दिलाती है. इस आरती में उनके पवित्र चरित का वर्णन है. जो भी लोग श्रद्धा-भक्ति के साथ रोजाना इस उनकी आरती करते हैं. उनके सारे रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं. इसके साथ ही सारी मुरादें पूरी (ajitnath bhagwan ki aarti) हो जाती हैं.
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अजितनाथ भगवान की आरती (shri ajitnath bhagwan aarti)
जय श्री अजित प्रभु, स्वामी जय श्री अजित प्रभु ।
कष्ट निवारक जिनवर, तारनहार प्रभु ॥
पिता तुम्हारे जितशत्रू और, माँ विजया रानी । स्वामी माँ ०
माघ शुक्ल दशमी को जन्मे, त्रिभुवन के स्वामी
स्वामी जय श्री अजित०
उल्कापात देख कर प्रभु जी, धार वैराग्य लिया । स्वामी धार०
गिरी सम्मेद शिखर पर, प्रभु ने पद निर्वाण लिया ॥
स्वामी जय श्री अजित०
यमुना नदी के तीर बटेश्वर, अतिशय अति भारी । स्वामी अतिशय०
दिव्य शक्ति से आई प्रतिमा, दर्शन सुखकारी ॥
स्वामी जय श्री अजित०
प्रतिमा खंडित करने को जब, शत्रु प्रहार किया । स्वामी शत्रु०
बही ढूध की धार प्रभु ने, अतिशय दिखलाया ॥
स्वामी जय श्री अजित०
बड़ी ही मन भावन हैं प्रतिमा, अजित जिनेश्वर की । स्वामी अजित०
मंवांचित फल पाया जाता, दर्शन करे जो भी ॥
स्वामी जय श्री अजित०
जगमग दीप जलाओ सब मिल, प्रभु के चरनन में । स्वामी प्रभु०
पाप कटेंगे जनम जनम के, मुक्ति मिले क्षण में ॥
स्वामी जय श्री अजित०